मुझे क्यू ऐसा लगा कि मेरी मंझील मिल गयी थी
अब तक मेरे पांवके छाले नहीं निकले थे,
अब तक मेरे हात ठीक से मैले भी नहीं थे,
अभी मेरे दिल में थोडा चल पाने कि उम्मीद थी,
फिर मुझे क्यू ऐसा लगा कि मेरी मंझील मिल गयी थी .…
अभी तो मेरे दुश्मन मुझपे ठीकसे हंसे भी नहीं थे,
और मेरे दोस्त मेरे लिये ठीकसे रोये भी नहीं थे,
अभी मेरे आखोंमे हलकासा जुनून बाकी था,
फिर मुझे क्यू ऐसा लगा कि मेरी मंझील मिल गयी थी .…
तब तो पेरे पास खोने के लिये बहोत कूच बाकी था,
तब तो मेरे रगोमें दौडता हुआ खून भी काफी था,
धडकने भी मस्त चालू ठी, जिने कि आंच भी बुझी नहीं थी,
फिर मुझे क्यू ऐसा लगा कि मेरी मंझील मिल गयी थी .…
ऐसा लगने कि सिर्फ दो वजह हो सकती थी,
या तो मैने मंझील पाने कि उम्मीद हि छोड दि थी,
या तो मुझे मंजिल जरूरत से (नसीब से) बहुत पहले मिल गई थी ,
इसीलिये मुझे ऐसा लगा कि मेरी मंझील मिल गयी थी .…
हर्षद .