मैने तो घर बना दिया था रेल्वे को. पिचले १४० घंटे मी १०३ घंटे ट्रेन मे था. क्यू? पता नहि. शायद कद्दू जैसा मुह बना के झूठ मूठ का साहिब बनकर २-४ घंटे में पुरा देश घूम के, लाखो रुपये कमानेका नाटक करने वाले माशिनोंसे घीन आ गयी थि.
लगाव हो गया था , ३ लोगो में १ पराठा बातंणे वालों का , नाम पूंच ने से शुरू कर के कुच मिंटो मे गर्लफ्रेंड को पटाने कि सलाह देने वाले देहरादून के फौजी का , १ फ्रुटी खरीद के २१ साल कि बिवी और ४ - २ साल के बच्चोंको घुट घुट पिलाने वाले (लेकिन खुद एक बुंद न पीने वाले) मजदूर का AC दिब्बे के बहर आलमारी मे बैठकर दारू पीने वाले और १५ मिनिट में ७५ रजाइया ठीक से रखने वाले attendant का … चंबळ कि किनारे दिखने वाले सूर्यास्त का …।
जब तक मैने लगभग एक स्टेशन पार किया , तब तक मेरे दोस्त दिल्ली से मुंबई से गुवाहाटी से चेन्नई जा कर आगे निकाल चुके थे … मैने इतना तो नहि देखा ……पर
चावल और नारियल को गोद में लेकर तमिलनाड ,
सुपारी और सागवान को पेहना हुआ कर्नाटक ,
संत्रा और केले को प्यार करता महाराष्ट्र ,
निंबू , तमातर और मिर्च का तिलक लगाए मध्य प्रदेश ,
सरसो और मकोसे भरपूर हरयाणा और
गंगा यमुना के गोद मी खडा उजाड उत्तर प्रदेश ….
इन सब को देखकर में जब दिल्ली पहुंचा और आसमान मे देखा , तो ५-६ विमानो मे उडते ५-६०० लोगोंको अभीभी लग रहा था कि वो इस देश को चला राहे है !
भारत मी एक दिन मे ३००० ट्रेने चलती है . एक ट्रेन १५ दिब्बो मे ७० के हिसाब से १००० लोगोंको ले जाती है . मतलब मै जब रात को घर में सोता हु और सुबह उठता हुं उसके बीच ३० लाख लोग अपने शेहेर से १००० कि. मि. दूर जा चुके होते है .
चावल कि भारी गंजी के बाजू मी जब खेत में मजदूर को देखता हुं तब परिंदे और बाज कहां दिखेंगे येह समज जाता हुं .
सागवान के पेड देखता हुं तो बांधवगढ पास है येह समज जाता हुं .
साफ सुधरे शेहेर से गाडी गुजरती है तो शेहेर के बाहर कितनी गंदगी दिखेगी येह समज जाता हुं . और सामने वाले के पूंचे गये पेहेले सवाल से उसका प्रांत , और अकल समज जाता हुं !!!
हिमालय से केरळ तक के सारे लोगोंसे , पेडोंसे , पान्छियोन्से , रंग -गंध से पेहचान करवाने वाली , सूरज तारे , नदी , पर्वत , तालाब इनसे बाते करवाने वाली , और खुद से बाते करने का मौका देने वाली येह सफ़रे ……. अफसोस … अब बहुत कम दिखाई देगी …। !!!!!