Souvenir
झांकते थे खिडकियों से , खरीदते थे आँखों से
खडा हूं उसी पुराने दुकान में, बता क्या लाऊ तुम्हे तोहफे में
चाहे जो मांग लो आज वक्त है, दानत है, पैंसों से भरी है थैली
साँस एक लेकर, गेहरी आवाज में ! थोडा मुस्कुराकर वो धीरे से बोली
"ना मांगूगी तो हसोगे, मांगूगी तो पछताओगे
वक्त और थैली कम पड जाएंगे , पैसे खुद् भीख मांगेगे
सच में अगर लाना चाहते हो तो दुकान से बाहर जाओ
आंख बंद करो और ला सकते हो तो ले आओ .....
थोडी मिट्टी , थोडी हवा , थोडा पानी समुंदर से
थोडे आंसू , थोडी हसी , थोडी बाते यादों से
वहा कि मेहेक, वहा कि राते , वहा का आसमान ले आ
यहां शोहरत है , कामयाबी है , थोडा 'वहा' कम है यहा"
Harshad...
No comments:
Post a Comment