Thursday, 14 March 2013

यहां सबकुछ शांत शांत है,
यहां सबकुछ शांत शांत है,

कोई किसीको फ़साता नही,
किसीको कोई लुटता नही,
कौए है  भैठे जिस डाल पर,
वो डाल कोई तोडता हि नही…

कालिया है खिल रही,
भवरोंकी उसपे नजर तक नही,
भले पेड क्यू न हो खोंकला,
उसे जलानेवाला भी कोई नही…

बाते है हो रही,
झगडे भी कुछ कम नही,
सवाल सच झूठ का तो है हि नही , लेकीन,
सच को सच केहनेवाला कोई बचा नही…

खून गरम किसका होता नही,
किसीपे कोई चिल्लाता तक नही,
अरे बरसोंसे ऐसेही चला आ रहा है,
ये केहनेवाला कोई मौजूद नही…


यहां सबकुछ शांत शांत है,
यहां सबकुछ शांत शांत है…




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